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नील कमल समय के संजीदा कवि हैं । संपर्कः 09433123379 |
एक बार की बात
(बच्चों के लिये एक कविता)
एक बार की बात सुनो तुम
चमकीली वह रात सुनो तुम ।
अपने आंगन में उतरी थी
तारों की बारात सुनो तुम ॥
गोलू आओ, बेबू आओ
निक्कू, चीनू तुम भी आओ ।
जब हम तुम जैसे बच्चे थे
मन के खरे और सच्चे थे ।
क़लम डुबो कर लिखते जिसमें
शीशे की दावात सुनो तुम ॥
नीले स्याही का जादू जब
सिर चढ़ कर बोला करता था ।
कोरे पन्नों पर सपनों का
पंछी पर तोला करता था ।
हर उड़ान में शामिल होती
अपने मन की बात सुनो तुम ॥
आम,बेर, इमली, जामुन के
पेड़ हमारे बड़े निकट थे ।
गूलर, नीम और बरगद के
पेड़ साथ ही खड़े विकट थे ।
महुआ झरते फूल सुनहरे
पीपल झरते पात सुनो तुम ॥
खेतों में पकते अनाज की
खुशबू से मन भर जाता था ।
ढिबरी सांझ ढले जब जलती
घन से घन तम डर जाता था ।
धुले-धुले से मन सबके थे
नहीं कहीं थी घात सुनो तुम ॥
लिपे-पुते घर की देहरी पर
खुशियों का बारहमासा था ।
राग रसोई का मौसम तो
अपने घर अच्छा खासा था ।
कितने मन से हम खाते थे
तरकारी और भात सुनो तुम ॥
विद्यालय था तीन कोस पर
कोस अढ़ाई था बाज़ार ।
दूरी बीच नहीं आती थी
चलते थे सब कारोबार ।
अपने आंगन से गंगातट
किलोमीटर सात सुनो तुम ॥
जब तुम कुछ लिख-पढ़ जाओगे
सचमुच आगे बढ़ जाओगे ।
बचपन अपना याद करोगे
घर आंगन आबाद करोगे ।
मीठी यादों ने खिड़की में
रक्खे होंगे कान सुनो तुम ॥
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
बेहतर...
ReplyDeleteबालगीत अच्छा लगा। आभार। बच्चों को शायद कुछ लम्बा लगे।
ReplyDeleteबहुत शानदार कविता। रिदम और कथ्य दोनों में ही लाजवाब... बधाई...
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