![]() |
नीरज चड्ढा |
नीरज चड्ढा एक ऐसे मित्र रहे हैं जिन्हें मैं एक गंभीर अध्येता और वैज्ञानिक के रूप में जानता था। कई बार मंच से जब वे बोलते थे तो ऐसी कविताएं उद्धृत करते थे जो मेरे लिए बिल्कुल नई होती थीं। बाद में पूछने पर उन्होंने बताया कि वे कविताए दरअसल उनकी ही होती थीं। बहरहाल आज 23 जून उनका जन्मदिन है। आज अनहद पर उनकी एकदम ताजी कविताएं प्रस्तुत हैं। आप अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें जरूर अवगत कराएं।
(एक)
काला धन
सभी काले
भ्रष्टाचार के धुँए में
-----------------
मैं प्रधान
सब देखता हूँ
धृतराष्ट्र की तरह
-----------------
एक योगी
बहुत उठा
चने की झाड़ पर
-----------------
देश की लाज
लुट रही है
तमाशा अच्छा है
सभी काले
भ्रष्टाचार के धुँए में
-----------------
मैं प्रधान
सब देखता हूँ
धृतराष्ट्र की तरह
-----------------
एक योगी
बहुत उठा
चने की झाड़ पर
-----------------
देश की लाज
लुट रही है
तमाशा अच्छा है
(दो)
सुनहरे से, लाल, हरे, पीले,
जाने क्या-क्या लिखा, अनचाहे-अनजाने,
अब टटोलता हूँ हर एक हर्फ,
बचाकर, कहीं खो न जाय .....
सम्हाल कर रखी हैं छोटी-छोटी बातें,
कुनमुनाते-चुहचुहाते चूजों की तरह,
कभी आना, दिखाऊँगा,
कैसे सहेजते हैं यादें,
तिनका-तिनका कर बने घोंसले की तरह ..
जाने क्या-क्या लिखा, अनचाहे-अनजाने,
अब टटोलता हूँ हर एक हर्फ,
बचाकर, कहीं खो न जाय .....
सम्हाल कर रखी हैं छोटी-छोटी बातें,
कुनमुनाते-चुहचुहाते चूजों की तरह,
कभी आना, दिखाऊँगा,
कैसे सहेजते हैं यादें,
तिनका-तिनका कर बने घोंसले की तरह ..
(तीन)
एक बात पूछूँ ?.....
तुम हो क्या वहाँ ? बढ़ कर छू लूँ तुम्हें ?
नाराज हो ? आकर मना लूँ तुम्हें ?
याद करती हो मुझे, कभी पलकें बन्द करके ?
कुछ कहना था क्या ? आकर बता दूँ तुम्हें ?
तुम हो क्या वहाँ ? बढ़ कर छू लूँ तुम्हें ?
नाराज हो ? आकर मना लूँ तुम्हें ?
याद करती हो मुझे, कभी पलकें बन्द करके ?
कुछ कहना था क्या ? आकर बता दूँ तुम्हें ?
(चार)
अब जन्मदिन, साल में एक दिन,
आ के मुझको डराने लगे हैं,
अठखेलियाँ छोड़, गम्भीरता ओढ़,
मुझको चिढ़ाने लगे हैं,
शुरू कीजिये जाप, सुनिये अजी आप,
अब तो बुढ़ाने लगे हैं ....
आ के मुझको डराने लगे हैं,
अठखेलियाँ छोड़, गम्भीरता ओढ़,
मुझको चिढ़ाने लगे हैं,
शुरू कीजिये जाप, सुनिये अजी आप,
अब तो बुढ़ाने लगे हैं ....
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
बहुत बढ़िया --
ReplyDeleteचमत्कारिक ||
(१)
अच्छे, बड़े सच्चे |
दु:शासन के --
उड़ेंगे परखच्चे --
मरेंगे, धृत-राष्ट्र के बच्चे ||
(२)
अच्छी तरह से --
ये - घोसले |
कुनमुनाते चूजों को--
पोस लें ||
(३)
गर इजाजत डौगी
इक बार छू के देखूं--
- - - - - - - - - - - -
दो बार छू के देखूं --
सौ बार - - - - - - -
(४)
फिर भी मरने का डर |
धीरे -धीरे कम हो गया है |
इससे बस थोडा सा आगे
मेरा गम हो गया है ||
बहुत ही गंभीर रचनाएं ... सादर
ReplyDeleteallahabad ki peskas.........
ReplyDeletelagi hame bahut mast...........
ispar hame nahi koi sakh.............
grt going bhaiya........... :)
किससे कहुँ
ReplyDeleteकैसे कहुँ
कहना तो चाहता हुँ
पर कोई मिलता क्यों नहीं
यूँ शब्द क्यो नही मिल रहे मुझे
शायद स्वप्न देख रहा हुँ मैं
नही ये स्वप्न नही
ये तो प्रभाव है
इन कविताओं का जो
अनुपम है
neeraj ji ko ek ache dost ki tarah se bat pehle se jaanti hun
ReplyDeleteusnke is pehlu ke baare me pata to tha par itne gehre bhav hain ye ni jaanti thi
neeraj ji aapke margdarshan ki hamesha jarurat hai
एक बात पूछूँ ?.....
तुम हो क्या वहाँ ? बढ़ कर छू लूँ तुम्हें ?
नाराज हो ? आकर मना लूँ तुम्हें ?
याद करती हो मुझे, कभी पलकें बन्द करके ?
कुछ कहना था क्या ? आकर बता दूँ तुम्हें ?
bahut achi likhi hai :) meri post par aapke ek comment yaad aa gaya "har insaan ko ek baar pyar jarur karna chahiye, yar insaan ko bahut acha bana deta hai"
:)
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरविकर जी, डॉ. नूतन, अभिजीत, माही और शेफाली आप सभी को धन्यवाद ।
ReplyDeleteरविकर जी, आपकी कविता भी कम चमत्कारिक नहीं है । इसे मेरी कविताओं की टिप्पणी में जोड़ने के लिये शुक्रिया ।
शेफाली खुद एक बहुत अच्छी मित्र, एक लेखिका और अच्छी इन्सान हैं । इनके शब्द अक्सर विभोर किये रहते हैं: http://wordsbymeforme.blogspot.com/
पर सभी के साथ उस सज्जन को विशेष धन्यवाद जिसने इन कविताओं को अपने ब्लॉग पर स्थान दिया :-) त्रिपाठी जी, अभी बहुत सी हिचकियाँ आपको असमय परेशान करेंगी !