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अखिलेश्वर पांडेय |
अखिलेश्वर पांडेय की कविताओं में माटी की सुगंध तो है ही बोलियों
के शब्दों का यथोचित और मार्मिक प्रयोग चकित करता है । यहाँ गंवई नादानी है – लोक की अद्वितीयता तो है
ही - कविता को कविता की तरह लिखने का माद्दा भी है। ये कविताएँ साबित करती हैं कि
सरल-सहज भाषा में भी अच्छी और मार्मिक कविताएँ लिखी जा सकती हैं – कि अब भी लिखी
जा रही हैं। यहाँ आकर इस यकीन का दृढ़ हो जाना लाज़मि है कि कविता के भविष्य को
ऐसे कवि ही नेतृत्व देने वाले हैं।
साहित्य
का स्थापना गीत
अंधेरी
रात की प्रशंसा गीत गा रहे
कवियों
का स्वर शोकगीत में बदल जाये
उससे
पहले बता देना जरूरी है-
कि
कविता ऊंगलियों का स्पर्श-गीत है
हर
हमेश मिलन में गान ही नहीं होता
विरह
वेदना में भी फूटते विरल गीत
तब
पहाड़ी झरने की तरह बजता है संगीत
हर
नायिका के जुड़े में स्पंदन का कोरस नहीं होता
कुछ
के पल्लू में करुणा की गांठ भी होती है
कुछ
जीवन-राग गाये नहीं जाते
कुछ
लय तो होठ पर थिरक कर ही रह जाते हैं
लोकगायक
गीत नहीं लोक वेदना का अलाप लेता है
पृथ्वी
की गोद में बैठे पेड़ की बातें सुनो तो पता चले
जीवन
चेतना को संतृप्त और स्पंदित करती कविता
कुछ
और नहीं
साहित्य
का स्थापना-गीत है
हाल-ए-गांव
कम
पानी वाले पोखर की मछलियां
दुबरा
गयीं हैं
ऊसर
पड़े खेतों की मेढ़ें रो रही हैं
बेरोजगार
लड़कों का पांव मुचक गया है
पुलिस
बहाली में दौड़ते-दौड़ते
बुजुर्गों
की उमर थम गयी है
अच्छे
दिनों के इंतजार में
लाल
रीबन की चोटी वाली लड़कियां
बेपरवाही
में जवान हो रही हैं
दुकानों
पर लेमनचूस की जगह
बिक
रहे मैगी- कुरकुरे
बैल
की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है
गाछ
की जगह खंभा खड़ा है
ट्रेन
की खिड़की से देख रहा हूं
बगल
वाली पटरी मुझसे दूर हो रही है!
चिनिया
बादाम बेचता हुआ लड़का
उस
कामिक्स बुक को ललचाई नजर से देख रहा है
जिसे
पढ़ते हुए सो गयी है मेरी बेटी
मोबाइल
पर मां कह रही है
'अगिला बार ढेर दिन खातिर अईह..."
लड़की
क्या सोचती है
स्कूल
जाती और घर लौटती हुई लड़की क्या सोचती है
मम्मी-पापा, दीदी-भइया, दादा-दादी, नाना-नानी
ललचाते
आम,
मीठे जामुन
लंबी
चोटी,
नेल पॉलिस, लाल फ्रॉक, पिंक
सैंडिल के बारे में सोचती है
क्लास
टीचर के गुस्से से बचने के तरीके
अपनी
लालची सहेलियों से छिपाकर टिफिन खाने
डोरेमॉन, छोटा भीम, छुटकी के बारे में सोचती है
वह
अपने बारे में नहीं सोचती
इस
बारे में कोई
'और' सोचता है
वह
सोचता है उसके छोटे कपड़ों
और
देह के बारे में
लड़की
कभी नहीं सोचती
डर
के बारे में
बुरी
नीयत के बारे में
खुद
के लड़की होने के बारे में!
प्रार्थना
मैं
चीटियों के घर में रहता हूं
मुसाफिर
की तरह
उनके
लाये चावल और चीनी पर पलता हूं
प्रेम
कहानियां डूब कर पढ़ता हूं
एक
मादा पक्षी से प्यार करता हूं
तितली
बन चूमता हूं आसमान का माथा
पहाड़
पर बैठा बूढ़ा बाज हूं
गौर
से देखता हूं नदी को
बुझाता
हूं आंखों की प्यास
टहनी
से विलग होते पत्ते की अंतहीन पीड़ा
मेरे
भीतर देर तक प्रतिध्वनित होती है
शापग्रस्त
पीठ पर पश्चाताप की गठरी की तरह
मैं
इंतजार में हूं
एक
ऐसे यायावर की...
जो
बच्चों के लिए मुस्कान लेकर आयेगा
एक
ऐसे क्षण की...
जब
लोग प्रार्थना के बजाय
कविताओं
को मंत्र की तरह पढ़ेंगे
और
यह धरती पवित्र हो जायेगी
पहले
की तरह
हमेशा-हमेशा
के लिए!
पढ़ना
मुझे
हर्फ-हर्फ
पढ़ना
हौले
से पढ़ना
पढ़ना
मुझे ऐसे
जैसे
चिड़िया करती है प्रार्थना
पढ़ा
जाता है जैसे प्रेमपत्र
जैसे
शिशु रखता है धरती पर पहला कदम
कोई
घूंघटवाली स्त्री उठाती है पानी से भरा घड़ा
स्पर्श
करती है हवा फूलों को जैसे
जैसे
चेहरे को छूती है बारिश की पहली बूंद
दुआ
में उच्चरित होते हैं अनकहे शब्द जैसे
चिड़िया, प्रेमपत्र, स्त्री, बच्चा,
फूल, बारिश और दुआ
इन
सबमें मैं हूं
इनका
होना ही मेरा होना है
शब्द
तो निमित मात्र हैं
जब
भी पढ़ना
अदब
से पढ़ना
पढ़ना
ऐसे ही
जैसे
पढ़ा जाना चाहिए.
एक
दिन
चला
जा रहा था बच्चे की तरह
इधर-उधर
देखता,
हंसता, खिलखिलाता
तभी
अचानक
एक
दिन पता चला
तुम्हारे
शब्द तुम्हारे थे ही नहीं
अब
मेरे लिए निश्चिंत होना असंभव था
और
बड़ों की तरह
व्यवहार
करना जरूरी.
****
अखिलेश्वर
पांडेय
जन्म : 31 दिसंबर 1975 को बिहार के सारण जिलांतर्गत ग्राम बसंतपुर
में.
पुस्तक : पानी उदास है (कविता संग्रह) - 2017
प्रकाशन : हंस, वागर्थ, पाखी, कथादेश, परिकथा, कादंबिनी,
साक्षात्कार,
इंद्रप्रस्थ भारती, हरिगंधा, दैनिक
जागरण, दैनिक भास्कर, प्रभात खबर आदि अनेक
पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं, पुस्तक समीक्षा,
साक्षात्कार व आलेख प्रकाशित. कविता कोश,
हिन्दी समय, शब्दांकन, स्त्रीकाल,
हमरंग, बिजूका, लल्लनटॉप,
बदलाव आदि वेबसाइट व ब्लॉग पर भी कविताएं व आलेख मौजूद.
आकाशवाणी
पटना और भोपाल से कविताएं व रेडियो वार्ता का प्रसारण.
फेलोशिप/पुरस्कार : कोल्हान (झारखंड)
में तेजी से विलुप्त होती आदिम जनजाति सबर पर शोधपूर्ण लेखन के लिए एनएफआई
का फेलोशिप और नेशनल मीडिया अवार्ड.
शिक्षा : पत्रकारिता में स्नातक (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय
पत्रकारिता विवि, भोपाल, मध्य प्रदेश)
संप्रति : पत्रकारिता (हिन्दी दैनिक 'प्रभात
खबर' - जमशेदपुर, झारखंड)
संपर्क
:
द्वारा : एस के ठाकुर, मकान
नंबर - 14, रोड नंबर - 3, पंचवटीनगर,
सोनारी, जमशेदपुर (झारखंड),
पिन - 831011
मोबाइल -
8102397081
ई-मेमल : apandey833@gmail.com
चित्रः विजेन्द्र
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
अच्छी कविताएँ l
ReplyDeleteसरोकार की संवेदना की मार्मिक अभिव्यक्ति है...भाषा सहज लेकिन कविता में भाव प्रधान है...ग्रामीण बदलाव की आहट में भविष्य के लिए सजगता है जिसे आम दृश्यों में छिपी विशेष दृष्टि से ऐसे रचा गया है जैसे तस्वीर में रेखाएं खींच रंग भरा जा रहा हो
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