tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post28641475642539064..comments2023-09-28T03:22:45.585-07:00Comments on अनहद कोलकाता: संजीव बख्शी की लंबी कविता - बस्तर का हाटविमलेश त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-83162707530251495092013-01-18T22:46:20.151-08:002013-01-18T22:46:20.151-08:00आभार भाई.....आभार भाई.....विमलेश त्रिपाठीhttp://bimleshtripathi.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-29384145546042394672013-01-18T22:01:01.919-08:002013-01-18T22:01:01.919-08:00संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभा...संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर। <br /> कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है। <br /> हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।Harihar Vaishnavhttps://www.blogger.com/profile/13169075818494539448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-74102384017834539682013-01-18T21:59:30.641-08:002013-01-18T21:59:30.641-08:00संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभा...संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर। <br /> कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है। <br /> हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।Harihar Vaishnavhttps://www.blogger.com/profile/13169075818494539448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-7367483758073079662013-01-18T21:49:02.035-08:002013-01-18T21:49:02.035-08:00संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभा...संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर। <br /> कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है। <br /> हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।Harihar Vaishnavhttps://www.blogger.com/profile/13169075818494539448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-23008588678397023092013-01-18T21:48:13.465-08:002013-01-18T21:48:13.465-08:00संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभा...संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर। <br /> कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है। <br /> हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।Harihar Vaishnavhttps://www.blogger.com/profile/13169075818494539448noreply@blogger.com