tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post8569849236094467013..comments2023-09-28T03:22:45.585-07:00Comments on अनहद कोलकाता: बाकलम खुद कुमारिल, खुद प्रभाकर : हिंदी के नामवर - प्रफुल्ल कोलख्यानविमलेश त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-31652970259351413602017-05-13T23:51:25.078-07:002017-05-13T23:51:25.078-07:00Shivani गुप्ता जी की टिप्पणी पढ़ी। फिर पढ़ने की को...Shivani गुप्ता जी की टिप्पणी पढ़ी। फिर पढ़ने की कोशिश करूंगा। प्रफुल्ल जी से क्या आपत्तियाँ हैं यह तो स्पष्ट नहीं हो पाया, हाँ इस लेख से संबंधित कुछ आपत्तियाँ समझ में आ रही हैं। जब नामवर जी को खुद कुमारिल, खुद प्रभाकर कहा गया है तो इसका अर्थ तो कुमारिल और प्रभाकर को और उनके संदर्भों को समझने से ही खुल पायेगा। नामवर को समझना तो नामवर जी के लिए भी मुश्किल है। ऐसे लेख को ठीक से पढ़ना चाहिए, इसकी खूबियाँ जानने के लिए भी और खामियाँ जानने के लिए भी। <br />बहरहाल, जहाँ कोई पढ़ता ही न हो वहाँ 'ठीक से पढ़ने' का आग्रह! आपने तो टिप्पणी भी की है। शुक्रिया। अभिनेता पात्र को जीया करता है, यह लेख नामवर जी को जीने की हिमाकत कैसे कर पाता। शुक्रिया।प्रफुल्ल कोलख्यान / Prafulla Kolkhyan https://www.blogger.com/profile/08488014284815685510noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-79433496950788833282017-05-13T20:09:31.080-07:002017-05-13T20:09:31.080-07:00उपरोक्त कॉवेन्ट डॉ.शिवानी गुप्ता का है।उपरोक्त कॉवेन्ट डॉ.शिवानी गुप्ता का है।विमलेश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-24605665048702753722017-05-13T20:09:01.621-07:002017-05-13T20:09:01.621-07:00उपरोक्त कॉवेन्ट डॉ.शिवानी गुप्ता का है।उपरोक्त कॉवेन्ट डॉ.शिवानी गुप्ता का है।विमलेश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-87383851968843827632017-05-13T20:07:32.365-07:002017-05-13T20:07:32.365-07:00नामवर सिंह पर सच कुछ भी लिखना थोड़ा कठिन है लेकिन क...नामवर सिंह पर सच कुछ भी लिखना थोड़ा कठिन है लेकिन कठिन होते हुए भी शायद उस संदर्भ में थोड़ा आसान जब आप यह जानते समझते हों कि एक आलोचक अंततः अपनी आलोचना में अपनेआपकी ही आलोचना में संलग्न होता जाता है और रचना गौण होती जाती है हालांकि वह बात उसी रचना पर कर रहा होता है।नामवर यद्यपि एक उच्च श्रेणी के हिन्दी आलोचक है लेकिन मुझे लगता है भारतीय अंग्रेजी साहित्य में भी शायद उनकी टक्कर का आलोचक नहीं...रही बात उनकी सृजनात्मकता की तो बस इतना कहना है कि नामवर का सृजन किसी रचनाकार का मोहताज नहीं हो पाया है नामवर की अध्ययनशीलता औरवैचारिकी का स्तर इतना विस्तृत है कि वे खुद कुछ स्थापनायें गढ़ते और खारिज करते रहे हैं और तमाम जगहों पर उनसे असहमति बनायी जाती रही है सहमति केतमाम दरवाजो के खुले होने के बावजूद..जब आप एक ऐसे बौद्धिक श्रेणी से रुबरु होते हैं जिसकी वैचारिक समझ को जगह देने के लिए खुद दो कदम पीछे हटना पड़े तो समझना होगा कि वह बौद्धिक कितनी ईमानदारी और सचाई से अपने वैचारिकी दखल अंदाजी कर रहा है ।हिन्दी साहित्य में नामवर कुछ इसी तरह से जाने जाते हैं..प्रफुल्ल जी से मेरी कुछ आपत्तियाँ हैं।इतने गम्भीर लेखन के बावजूद मुझे उनके लेख मे नामवर कहीं नहीं दिखते।बात नामवर की आलोचना शैली या विषय से गुजरती तो जरुर है उनकी अच्छी भली के बावजूद नामवर उनकी नजर में क्यि हैं मैं समझ नहीं पाई...माफी के साथ ये लेख तमाम सम्भावनाओं के बावजूद नामवर जी को जी नहीं पाया है।विमलेश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-25506384525058146742017-05-11T02:27:40.617-07:002017-05-11T02:27:40.617-07:00नामवर सिंह को केन्द्रित इस आलेख को पढ कर लगा कि हि...नामवर सिंह को केन्द्रित इस आलेख को पढ कर लगा कि हिन्दी के इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे टंकित होने वाले युग और विविधता के कई मानकों को एक ऊंचाई और स्रिजन बिंदू की नीव दिखाने वाले किसी युग पुरुष को पढ रही हूँ। इस समय को हिन्दी साहित्य को कभी ना भुलाने वाले नामवर सदेह संग्रहित और स्रिजित कर रहे हैं। साहित्य तो नही किंतु साहित्यकारों के लिए संयोजन का स्मरण रहे और क्रियात्मक रुप मे सार्थक रचनातमकता प्रखर साहित्य के रुप मे सामने आए। Pooja Singhhttps://www.blogger.com/profile/06414650429829124600noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-82604663325426979082017-05-11T02:25:31.222-07:002017-05-11T02:25:31.222-07:00नामवर सिंह को केन्द्रित इस आलेख को पढ कर लगा कि हि...नामवर सिंह को केन्द्रित इस आलेख को पढ कर लगा कि हिन्दी के इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे टंकित होने वाले युग और विविधता के कई मानकों को एक ऊंचाई और स्रिजन बिंदू की नीव दिखाने वाले किसी युग पुरुष को पढ रही हूँ। इस समय को हिन्दी साहित्य को कभी ना भुलाने वाले नामवर सदेह संग्रहित और स्रिजित कर रहे हैं। साहित्य तो नही किंतु साहित्यकारों के लिए संयोजन का स्मरण रहे और क्रियात्मक रुप मे सार्थक रचनातमकता प्रखर साहित्य के रुप मे सामने आए। Pooja Singhhttps://www.blogger.com/profile/06414650429829124600noreply@blogger.com