tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post8863396639727338510..comments2023-09-28T03:22:45.585-07:00Comments on अनहद कोलकाता: समकालीन कविता पर नील कमल का लेख -1विमलेश त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-21897644097683441612011-08-28T01:26:21.291-07:002011-08-28T01:26:21.291-07:00बहुत उपयोगी लेख !!.....कुछ अंश अपने लिए फेसबुक पर ...बहुत उपयोगी लेख !!.....कुछ अंश अपने लिए फेसबुक पर पोस्ट करने की अनुमति चाहूँगा!!सुन्दर सृजक https://www.blogger.com/profile/03250365209576301112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-80815790342081275742011-08-15T08:54:13.996-07:002011-08-15T08:54:13.996-07:00आभार, अगर नील कमल अनुमति देंगे तो उनका पूरा लेख यह...आभार, अगर नील कमल अनुमति देंगे तो उनका पूरा लेख यहीं आप अनहद पर ही पढ़ पाएंगे। अगले कुछ दिनों में। बहर हाल आप सभी के महत्वपूर्ण टिप्पणियों के लिए पुनः आभार...विमलेश त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-32020635937084837212011-08-15T05:27:15.189-07:002011-08-15T05:27:15.189-07:00Rangnath Singh ji , Ashok Kumar Pandey ji , yah al...Rangnath Singh ji , Ashok Kumar Pandey ji , yah alekh "Setu" ke kavita kendrit ank me prakashit hai ... yahan Bimlesh ji ne iska ek ansh hi sajha kiya hai ..aap poora alekh dekh lein..main jald hi upalabdh karane ki koshish karta hoon ..agar yah pravachan jaisa kuchh hai to main apani kahi hui har baat ko saaf karne ko prastut hoon ..sabhi mitron ko dhanyavad .neel kamalhttp://neelkamal1710.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-36254016761364990482011-08-15T02:02:12.578-07:002011-08-15T02:02:12.578-07:00janmdin ki ashesh shubhkamnaaye aur lekh ke liye b...janmdin ki ashesh shubhkamnaaye aur lekh ke liye badhai.. abhi haal he me maine ankur mishr ki smriti me aayojit kavi goshthhi me upasthit rahi. vahan manglesh dabraal ji ne aur arun kamal ji ne saaf taur par hindi sahity me hone vaali khemebazi ka zikr kiya. aur yah bhi sweekar kiya ki chhapne ke liye jo kavitaye aati hain unke saath tippaniya natthi hokar aati hain. to kavita chhapvaane ke liye pahle aap sampark sadhiye.. phir gut me shamil hoiye.. tab jaakar agar kavita chhapi to vah rachnakar ko kitna sukh degi ? akhir sahity ke kshetr me ghus aai ye rajneeti kitni ghatak hogi yah sawal siharan hi paida karta hai.लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-51759074194812526382011-08-15T01:49:47.395-07:002011-08-15T01:49:47.395-07:00नीलकमल जी जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें ! आपने मुद्...नीलकमल जी जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें ! आपने मुद्दे सही उठाए हैं .... चर्चा को सार्थकता प्रदान करना ... शुभकामानाएंNaresh Chandrkarhttps://www.blogger.com/profile/04402943856397087631noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-7960465027114999172011-08-15T00:16:10.309-07:002011-08-15T00:16:10.309-07:00जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें नीलकमल जी !....... &#...जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें नीलकमल जी !....... ''जैसे मन्दिर-मस्जिद-गिरजाघर-गुरुद्वारे जाकर मनुष्य मन से थोड़ा अधिक निर्मल और उदार हो जाता है; जैसे नदी के तट पर,पहाड़ों की गोद में या हरे-भरे खेतों के पास जाकर मनुष्य का मन थोड़ा अधिक उन्मुक्त हो जाया करता है, कविता के पास आकर मनुष्य पहले से थोड़ा बेहतर मनुष्य जरूर बनता है।...सभी विधायेँ कविता का ही विस्तार हैं । ''...... सही कहा आपने !!!सुशीला पुरीhttps://www.blogger.com/profile/18122925656609079793noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-27370384804055425812011-08-14T22:56:45.863-07:002011-08-14T22:56:45.863-07:00ना सिर्फ कविता बल्कि उत्तर अद्धुनिकता का टैग लगाये...ना सिर्फ कविता बल्कि उत्तर अद्धुनिकता का टैग लगाये ज्यादातर कहानियों में भी ब्योरों ,संकेतों प्रतीकों की भरमार है ,प्रमाणिकता ‘’की ‘सतर्कता’ का संकट भी कमोबेश हर विधा का संकट है !1985 के नोबेल पुरूस्कार विजेता क्लाउड सिमोन कहते हैं ‘’लेखक को सोचना चाहिए कि इस श्रम द्वारा उसके वर्तमान में क्या लिखा जा रहा है ?इस प्रकार हम एक नई चीज़ की खोज करते हैं जिस प्रकार एक चित्र ध्येय ये नहीं कि किसी खास विषय का सार लिख दिया जाये उसका ध्येय है कि वे विचार उससे प्रतिबिंबित होने चाहिए जिस प्रकार संगीत का प्रभाव होता है !’’कवियों की भीड़ में (सुयोग्य –जेन्युइन)कवी का पढ़ लिया जाना वाकई उस कवी का सौभाग्य है!...सारगर्भित, पठनीय लेख!बधाईवंदना शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/16964614850887573213noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-53309428332490776332011-08-14T22:26:12.313-07:002011-08-14T22:26:12.313-07:00जन्मदिन की बधाई...लेख पूरा पढ़ने के बाद ही कुछ कहू...जन्मदिन की बधाई...लेख पूरा पढ़ने के बाद ही कुछ कहूँगा. हालाँकि शुरुआत उम्मीद जगाने वाली है.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-10821929680767435752011-08-14T21:59:24.925-07:002011-08-14T21:59:24.925-07:00पहले तो लेखक को जन्मदिन कि बधाई....
इस लेख के सन्...पहले तो लेखक को जन्मदिन कि बधाई....<br /><br />इस लेख के सन्दर्भ में एक बात अच्छी लगी कि यह लेखक के जन्मदिन पर प्रस्तुत किया गया है. जन्मदिन मानने का यह तरीका बेहतर लगा....<br /><br />मैनेजर पांडे ने जो कहा उससे पुरी सहमति. अभी जो भी नौजवान लेखक लिख रहे हैं उनकी रचना पर 'बेबाक' देना उन्हें अपना दुश्मन बनाना है. <br /><br />एक दिक्कत यह भी है कि, कोई आदमी दो-चार चालू कवितायेँ या कहानियाँ लिख कर 'लेखक' बन सकता है. उसे इनाम-अकराम भी मिलने लगेंगे. लेकिन युवा आलोचक को प्रोत्साहन कहाँ से मिलेगा !! देवीशंकर अवस्थी जैसे आलोचना पुरस्कार की आयु-सीमा ४५ साल है ! यह आयु-सीमा अपने आप में एक बड़ा फ्रॉड है. <br /><br />आलोचना की दूसरी बड़ी दिक्कत है कि नए से नए आलोचक को जमे जमाये बरगदों से टकराना पड़ता है. शुक्ल जी,द्विवेदी जी.रामबिलास जी.नामवर जी,साही जी.तलवार जी.अग्रवाल जी, धर्मवीर जी,पांडे जी की बातों को काटना पड़ता है. यानी वह स्वयं को अजगर के मुँह में डाल रहा होता है. जो जीवित हैं वो खुद उस युवा से निपट लेते हैं और जो मृत हैं उनके चेले ऐसे नौजवानों कि खबर लेते हैं... जबकि तथकथित कवि और कहानीकार सभी की गोद में बारी-बारी बैठने को स्वतंत्र होते हैं. वह अपने रचना के माध्यम से साहित्य के मठाधीशों से कोई सीधी टक्कर नहीं लेते. सुखी रहते हैं. जबकि कोई नौजवान आलोचना में 'बागी' तेवर अपना ले तो उसका भविष्य अन्धकारमय होना तय है... <br /><br />और बहुत कुछ है कहने को. कभी इत्मिनानन से इस विषय पर लिखा जायेगा. मेर राय में यह लेख समकालीन आलोचना पर मुरारी बापू के प्रवचन सरीखा है.<br /><br />लेखक अमूर्त में विचरते रहा है. अधिकांश कवितायेँ सतही हैं, अधिकांश पुरस्कार सतही लोगों को दिए गए...ऐसे चालू बयान खाचिया भर दिए जा चुके हैं. लेखक को थोड़ा 'स्पेसिफिक' होकर भी बात करनी चाहिए थी. जिससे प्रवचन और आलोचना में थोड़ा अंतर दिखे.रंगनाथ सिंहhttp://www.banarahebanaras.com/noreply@blogger.com