tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post4422802885475089418..comments2023-09-28T03:22:45.585-07:00Comments on अनहद कोलकाता: अशोक कुमार पाण्डे की एक ताजी कविताविमलेश त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-28225009152154658062012-08-16T01:31:19.428-07:002012-08-16T01:31:19.428-07:00तुम तो छोड़ आये थे न राज प्रासाद
फिर...
कौन है ये ...तुम तो छोड़ आये थे न राज प्रासाद<br />फिर...<br />कौन है ये जो तुम्हें फिर से क़ैद कर देना चाहते है?<br />कौन हैं जो चाहते हैं चार सौ गाँवों की जागीर तुम्हारे लिए<br />यह कैसा स्मारक है बहुजन हिताय का जिसके कंगूरों पर खड़े इतराते हैं अभिजन?<br />...<br />ये प्रश्न है या आवाहन हैं ...जो भी हैं, हैं बहुत गहरे| अशोक भाई हैं ही ऐसे!! आनंदhttps://www.blogger.com/profile/06563691497895539693noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-72921845999236107302012-08-09T21:07:02.471-07:002012-08-09T21:07:02.471-07:00तुम मुस्करा रहे हो तथागत ?तुम मुस्करा रहे हो तथागत ?अजेयhttps://www.blogger.com/profile/05605564859464043541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-4198894036498092452011-10-22T10:48:16.500-07:002011-10-22T10:48:16.500-07:00आज बहुत दिनों बाद इसे अचानक देखा.
यह एनानिमस का खं...आज बहुत दिनों बाद इसे अचानक देखा.<br />यह एनानिमस का खंडन-मंडन मजेदार है..इन बेचेहरा मित्रों का आभार. राकेश भाई मेरे पसंदीदा कवियों में से हैं...काश वह कविता उपलब्ध करा दी जाती!<br />वैसे एक कम परिचित युवा कवि पवन मेराज ने भी कुशीनगर के इस सन्दर्भ को लेकर लंबी कविता लिखी है जो वसुधा में छपी थी.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-87407690886021636332011-09-25T10:40:18.436-07:002011-09-25T10:40:18.436-07:00अद्भुत कविता....हिन्दी में प्रतिरोध के बचे-खुचे कु...अद्भुत कविता....हिन्दी में प्रतिरोध के बचे-खुचे कुछ स्वरों में अशोक का स्वर सबसे तीखा और स्पष्ट है. यह कविता उसकी गवाह है...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-12944643312484354982011-09-21T06:17:49.136-07:002011-09-21T06:17:49.136-07:00बामियान और कुशीनगर का प्रयोग राकेश रंजन अपनी कवित...बामियान और कुशीनगर का प्रयोग राकेश रंजन अपनी कविता में इससे पहले कर चुके हैं...यहां यह संदर्भ अत्यंत लचर रूप में सामने आता है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-88488871451105707062011-08-14T21:44:05.408-07:002011-08-14T21:44:05.408-07:00good poem..good poem..Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-84697650477665127452011-06-30T00:20:29.178-07:002011-06-30T00:20:29.178-07:00बेहद जरूरी कविताबेहद जरूरी कविताNeerajhttps://www.blogger.com/profile/11989753569572980410noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-68775691220185554582011-06-19T00:35:29.793-07:002011-06-19T00:35:29.793-07:00बहुत ही अच्छी कविता. फ़ेसबुक पर इसकी कुछ पंक्तियां ...बहुत ही अच्छी कविता. फ़ेसबुक पर इसकी कुछ पंक्तियां आपने शेयर की थीं. औरों की तकलीफ़ को अपनी वाणी देना कभी आसान नहीं होता. <br />बुद्ध के साथ हमेशा यही हुआ है...मूर्तिपूजा के विरोधी बुद्ध की मूर्तियां सबसे अधिक बनीं और अब बाज़ार में बुद्ध फ़ैशन में हैं...कुशीनगर में बुद्ध की आड में बाज़ार अपनी पूरी वीभत्सता के साथ खेल कर रहा है.rajani kanthttps://www.blogger.com/profile/01145447936051209759noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-51286099044738361262011-06-18T18:37:33.033-07:002011-06-18T18:37:33.033-07:00साहित्य को समाज की चिंताओं से जोड़कर अशोक जी ने कमा...साहित्य को समाज की चिंताओं से जोड़कर अशोक जी ने कमाल की सार्थकता सिद्ध की है.दर-असल साहित्य का उद्देश्य महज़ 'स्वान्तः सुखाय' नहीं होना चाहिए !निश्चित ही किसी संवेदनशील सरकार को यह जगाने ,झिंझोड़ने के लिए पर्याप्त है,पर ऐसी आशा करना आज के समय में व्यर्थ है.<br /><br />रचनाकार और प्रस्तुतकर्ता दोनों बधाई के पात्र हैं !संतोष त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00663828204965018683noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-78264587912545256692011-06-18T12:05:32.775-07:002011-06-18T12:05:32.775-07:00आसपास घटती रहती हैं, उल्लेख की दृष्टि से अनिवार्य ...आसपास घटती रहती हैं, उल्लेख की दृष्टि से अनिवार्य घटनाएँ, हिन्दी का साहित्य-सर्जक ‘खबर’ को साहित्यिक रूप में रखने में तौहीन सा समझता है, तब तो और जब खबरिया चैनलों ने खबर का मतलब बिगाड़ के रख दिया हो, अब तो हिन्दी में कोई नागार्गुन भी नहीं जो इसे चुनौती समझ निभा डाले, खबर को संवेदना की सिरजन दे..अशोक जी की इस कविता को पढ़कर थोड़ा तोष अवश्य मिला!Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-44219240646718586342011-06-15T00:06:47.921-07:002011-06-15T00:06:47.921-07:00एक सशक्त रचना... परत दर परत महीनता से दुखो का खुला...एक सशक्त रचना... परत दर परत महीनता से दुखो का खुलासा करती, बाज़ारवाद बुध के नाम को केश करने में जुटा है कवि की फ़रियाद और आरोप अन्तर्मन कचोटते हैं मुक्ति की राह दिखाने वाले को नीव में दफना कर ब्रास की प्लेट पर चमकता उसका नाम... <br /> <br /> <br /><br />कब सोचा था कि एक दिन तुम्हारे कदमों से चलकर आयेगा दुःख<br /> एक दिन तुम्हारे नाम पर ही नाप लिए जायेंगे ढाई कदमों से हमारे तीनों काल<br />यह कौन सी मैत्रेयी है बुद्ध जिसे सुख के लिये सारा संसार चाहिये?<br />और वे कौन से परिव्राजक तुम्हारी स्मृति के लिए चाहिए जिन्हें इतनी भव्यता?neerahttps://www.blogger.com/profile/16498659430893935458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-31219816154976818332011-06-13T08:46:49.145-07:002011-06-13T08:46:49.145-07:00यह कौन सी मैत्रेयी है बुद्ध जिसे सुख के लिये सारा ...यह कौन सी मैत्रेयी है बुद्ध जिसे सुख के लिये सारा संसार चाहिये?<br />और वे कौन से परिव्राजक तुम्हारी स्मृति के लिए चाहिए जिन्हें इतनी भव्यता?<br /><br />बेहद सशक्त लिखा है ! कुछ लोगों के लिए यह उत्तर है और कुछ के लिए प्रश्न ! एक विचार को अग्रसारित करती है यह कविता !अरुण अवधhttps://www.blogger.com/profile/15693359284485982502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-12186868244046460392011-06-13T02:21:11.444-07:002011-06-13T02:21:11.444-07:00This comment has been removed by the author.manoj tiwarihttps://www.blogger.com/profile/12532062686021510890noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-49852555447790490662011-06-12T11:02:34.466-07:002011-06-12T11:02:34.466-07:00itihas ke panno se uthkar vartmaan ke 400 ganvo ke...itihas ke panno se uthkar vartmaan ke 400 ganvo ke logo ke krandan ko kavita is tarah prastut karti hai ki ek baar ko budh bhi apni samadhi se uth khade honge. us ahinsa ke premi ke naam par ki jaa rahi hinsa ki yah vidamabana paathak ke man ko jhakjhor deti hai.आसान नहीं अपने ही द्वारों के द्वारपाल हो जाने भर का संतोष<br />कहाँ से लाये वह असीम धैर्य जिसके नशे में डूब जाता है दर्द का एहसास<br />वह दृष्टि कि निर्विकार देख सकें सरसों के पौधों पर उगते पत्थरों के जंगल<br />निर्वासन का अर्थ निर्वाण तो नहीं होता न हर बार<br />और ऐसे में तो कोई स्वप्न भी अधम्म होगा न बुद्ध ek behad shaandar kavita. abhaar.लीना मल्होत्राhttps://www.blogger.com/profile/07272007913721801817noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-47008780181305071582011-06-12T09:25:10.364-07:002011-06-12T09:25:10.364-07:00आप सबका और भाई विमलेश का बहुत-बहुत आभार.आप सबका और भाई विमलेश का बहुत-बहुत आभार.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-67436470916655721672011-06-11T21:58:29.489-07:002011-06-11T21:58:29.489-07:00sundar kavita hai ashok, beshak tumhare abhi tak k...sundar kavita hai ashok, beshak tumhare abhi tak ke swar se thoda bhinn lekin jyada asardar aur jimmedari se likhi bhi.विजय गौड़https://www.blogger.com/profile/01260101554265134489noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-50958368741915687782011-06-11T09:15:14.698-07:002011-06-11T09:15:14.698-07:00स्वर्णिम इतिहास रचने के आग्रही सामन्तीय सोच की इसस...स्वर्णिम इतिहास रचने के आग्रही सामन्तीय सोच की इससे बड़ी उपहास और क्या होगी?यह कविता नहीं आंदोलन की नई आगाज है,उन चार सौ गावों से उजड़े हुए लोगों का क्रंदन है,अहिंसा के पुजारी पर रक्त-मांस की भेट चढ़ाने का आरोप है और तो और यह आशिक भाई के मुख से निकली शासकीय विलासिता पर विस्मित बुद्ध की ही अंतर्नाद है|<br />शैली थोड़ी गद्यात्मक होने पर भी मन को छू लेने में सफल है|समसामायिक विषय का चुनाव सराहनीय है| बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद भी!सुन्दर सृजक https://www.blogger.com/profile/03250365209576301112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-91151074929011706462011-06-11T09:13:30.195-07:002011-06-11T09:13:30.195-07:00This comment has been removed by the author.सुन्दर सृजक https://www.blogger.com/profile/03250365209576301112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-56345989815570615462011-06-11T09:09:32.164-07:002011-06-11T09:09:32.164-07:00This comment has been removed by the author.सुन्दर सृजक https://www.blogger.com/profile/03250365209576301112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-22581391106922858692011-06-11T07:51:35.637-07:002011-06-11T07:51:35.637-07:00अशोक जी .....दिन से कशमकश में उलझ गया ...इन शब्द्व...अशोक जी .....दिन से कशमकश में उलझ गया ...इन शब्द्वली के मायने बहुत कुछ निकलते हुए इंसानी जीवन के ....इस जीवन यात्रा में अनंत यूद्ध छिड़ा हुआ है द्वन्द का इस जीवन यात्रा में जीवन क्या है उस अन सुलझे सवालों को घेरती हुई इंसानी जिज्ञासा न खत्म होने वाली आप की शाब्दिक अभिव्यक्ति है ...आज कितना जीवन को अ संतुलित करता हुआ कहा गया है शब्दों में ........वाह .........इन्सान की निगाह आसमन में एक आशा पूर्ण तारे की और पर कही उसको हजारो निराश वादी तारों का झुण्ड दिख रहा है ...कहाँ किस्से पूछे अपनी व्यथा ???....और इसी पक्ति ने मुझे झकझोरा है आपकी <br />"""""कहाँ चले जाएँ हम दुखों की अपनी रामगठरिया लिए..............जब किसी आर्त पुकार में नहीं दरवाजों के उस पार तक की यात्रा की शक्ति<br />कौन सा ज्ञान दिलाएगा हमें इस वंचना से मुक्ति......आसान नहीं अपने ही द्वारों के द्वारपाल हो जाने भर का संतोष<br />कहाँ से लाये वह असीम धैर्य जिसके नशे में डूब जाता है दर्द का एहसास.....वह दृष्टि कि निर्विकार देख सकें सरसों के पौधों पर उगते पत्थरों के जंगल<br />निर्वासन का अर्थ निर्वाण तो नहीं होता न हर बार-.....और ऐसे में तो कोई स्वप्न भी अधम्म होगा न बुद्ध"""" हे सब कुछ सहज सह्ब्दों का बोलबाला पर मनो एक एक शब्द सामने वोशल पहाड़ सा प्रतीत हुआ आप की नीर उत्तर करती कविता मुझे कही धकेल गयी ...बहुत सुंदरा अन्तरग मन से निकले शब्द .....पर आप की किताब आने के बाद पहली कविता में सही में मुझे निउत्तर किया या सोचने पर विवश किया है ...बहुत बधाई अशोक भाई जी <br />. Nirmal PaneriTravel Trade Servicehttps://www.blogger.com/profile/11770735608575168790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-85083161369716295132011-06-11T03:47:41.715-07:002011-06-11T03:47:41.715-07:00कविता तो कमाल की है| धन्यवाद|कविता तो कमाल की है| धन्यवाद|Patali-The-Villagehttps://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-35478723537063807172011-06-11T02:28:25.023-07:002011-06-11T02:28:25.023-07:00’कस्मै देवाय हविषा विधेम’ की तरह बड़े और ज़ुरूरी स...’कस्मै देवाय हविषा विधेम’ की तरह बड़े और ज़ुरूरी सवाल करने वाली महत्वपूर्ण कविता.<br /><br />"कहो न बुद्ध दुःख ही क्यों हो सदा हमारे हिस्से में?<br /> बामियान हो कि कुशीनगर हम ही क्यों हों बेदखल हर बार?<br /> मुक्ति के तुम्हारे मन्त्र लिए हम ही क्यों हों हविष्य हर यज्ञ के ?"<br /><br />यही तो वे सवाल हैं जिन्हें हम पूछ रहे हैं कविता में और जिनके हल हमें ढूंढने हैं जीवन में . अच्छी कविता . सच्ची कविता .प्रियंकरhttp://anahadnaad.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-65935814171500357442011-06-11T02:10:29.293-07:002011-06-11T02:10:29.293-07:00तुम तो छोड़ आये थे न राज प्रासाद
फिर...
कौन है ये ...तुम तो छोड़ आये थे न राज प्रासाद<br />फिर...<br />कौन है ये जो तुम्हें फिर से क़ैद कर देना चाहते है?<br />कौन हैं जो चाहते हैं चार सौ गाँवों की जागीर तुम्हारे लिए<br />यह कैसा स्मारक है बहुजन हिताय का जिसके कंगूरों पर खड़े इतराते हैं अभिजन? ........ what an expression. Its really really a gr8 work."तिनका" https://www.blogger.com/profile/12013680023441566562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-10801431447281520302011-06-11T01:43:24.551-07:002011-06-11T01:43:24.551-07:00बेहतरीन रचना है अशोक जी! अनहद का आभार!!बेहतरीन रचना है अशोक जी! अनहद का आभार!!माधवी शर्मा गुलेरीhttp://www.guleri.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-44502298819353255962011-06-11T01:04:16.786-07:002011-06-11T01:04:16.786-07:00ताजा हमेशा ताजा होता है, वह ताजी कभी नहीं होता। कव...ताजा हमेशा ताजा होता है, वह ताजी कभी नहीं होता। कविता तो कमाल की है...अविनाशhttp://mohallalive.comnoreply@blogger.com