tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post8698577949101002164..comments2023-09-28T03:22:45.585-07:00Comments on अनहद कोलकाता: ऋतेश की दो कविताएंविमलेश त्रिपाठीhttp://www.blogger.com/profile/02192761013635862552noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-19729735330996970692011-01-19T03:25:44.245-08:002011-01-19T03:25:44.245-08:00बेहतरीन कविताएं....बेहतरीन कविताएं....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-3809811690012269942011-01-18T23:55:50.479-08:002011-01-18T23:55:50.479-08:00achchhi kavitayen.achchhi kavitayen.neel kamalnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-84596105096814273722011-01-18T02:17:13.691-08:002011-01-18T02:17:13.691-08:00An-Emoticon से सहमत हूँ, समय के साथ चलो, आज की पीढ...An-Emoticon से सहमत हूँ, समय के साथ चलो, आज की पीढ़ी और कल की पीढ़ी दोनों के लिए सवाल है, क्या वास्तव में हम समय के साथ चल पाते हैं? क्या इतनी गति से चल पाना भी संभव है? क्या एक मरीचिका के पीछे भागते रहना ही समय के साथ चलना कहलाता है ? बहुत अच्छी रचना है ऋतेश जी. <br />घर जाता हूँ किसी अपराधी की तरह भी कुछ इसी थीम पर है, अतः वही प्रश्न सम्मुख रखती है. विश्लेषणपरक लेखन के लिए बधाई . <br />ऋतेश जी को शुभकामनाएं और विमलेश जी को उनकी रचनाओं से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.Pooja Anilhttps://www.blogger.com/profile/11762759805938201226noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-12524484127158398142011-01-18T02:16:31.901-08:002011-01-18T02:16:31.901-08:00बेरहम हो चुके समय का एहसास सभी को...इसकी सच्चाई तो...बेरहम हो चुके समय का एहसास सभी को...इसकी सच्चाई तो अक्सर लोग बयां करते हैं....पर कुछ ही हैं जो समय को जीते हैं...बधाई ऋतेश जी को उनकी रचनायें पहली बार सब के सामने आयी...शुभकामनायें!!!!!!Arpitahttps://www.blogger.com/profile/00452777778593712485noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-49858175338434284432011-01-17T22:34:21.023-08:002011-01-17T22:34:21.023-08:00shukriya Prashant bhai....shukriya Prashant bhai....विमलेश त्रिपाठीhttp://bimleshtripathi.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-52329667868403933822011-01-17T08:40:08.660-08:002011-01-17T08:40:08.660-08:00समय के साथ चलो ने एक बेहद प्रासंगिक स्वाल उठाया है...समय के साथ चलो ने एक बेहद प्रासंगिक स्वाल उठाया है कि हम अपने बच्चे से ये कहें या न कहें..समय के साथ चलने के मायने हमेशा ही खुद से दूर जाने में ही हैं और ये तय कर पाने में कि ’चलें या न चलें’ अगर देर की तो अक्सर हम पीछे छूट जाते हैं भले ही खुद के पास, खुद के साथ रह जायें.. <br />अच्छी कविताएं...... ऋतेशजी को और आप को साझा करने के लिये धन्यवाद.प्रशान्तhttps://www.blogger.com/profile/11950106821949780732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8143915090672261064.post-21093762850069826972011-01-17T02:03:56.044-08:002011-01-17T02:03:56.044-08:00बहुत अच्छी कविताएं हैं ऋतेश जी की। बधाई और अनहद का...बहुत अच्छी कविताएं हैं ऋतेश जी की। बधाई और अनहद का आभार....Anonymousnoreply@blogger.com